सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

प्रदर्शित

यहाँ क्लिक कर आप मेरी आवाज़ में सुन सकते है।          सच्चा दोस्त... सच्चा दोस्त जो आपकी भावनाएं समझे... सच्चा दोस्त जो आपके साथ साथ, आपके परिवार जनों का भी सम्मान करे... जो आपके लिए अलग नही दिखना चाहता, जैसा है वैसे ही आपसे मिले...   वह आपके लिए बनावटी व्यवहार नही बनाता... एक सच्चा दोस्त... जब आप गलत हों वो काम करने से आपको रोके, जब कुछ अच्छा करते हैं आपको प्रोत्साहन करे... सच्चा दोस्त जो भले ही आपसे रोज मिल न पाए, पर मुसीबत में जिसे आप अपने सबसे करीब  पाए... जो कमियां आपके अंदर हैं, निसंकोच आपको ही बताए... और आपके पीठ पीछे आपकी प्रसंशा करता है। मन की बात सीधे और सरल शब्दों में, आपसे ही बयां करता है... आपके मुखभाव से आपकी, मनोवृत्ति भांप लेता है... वह है आपका सच्चा दोस्त... प्रदीप लाल आर्य  Mail us :-  parya0497@gmail.com +919756461704 subscribe me on youtube www.youtube.com/c/pradeeparya

जागो उत्तराखण्ड:डाळ्यौं की अभिलाषा:प्रदीप आर्य

#जागो_उत्तराखण्ड
साप्ताहिक २३मई 2016 का
अंक में प्रकाशित हुयी मेरी गढ़वाली कविता #डाळ्यौं_अभिलाषा
आप सभी स्नेही पाठकों को समर्पित...

डाळ्यौं की अभिलाषा..

 हम फर मनख्यौं की तरौं हाथ निछन,
 हिटणौं कू मनख्यौं जना गौणा निछन।

मनखि हम डाळ्यौं तैं उबटै देलि,
हे मनखि तब सांस कनै लेलि।

तब पड़लि मनख्यौं तैं आण,
मनखि सोच्दा हम पर नि पराण।

अपणा ही हातुन मनखि किलै,
कन्नि छैं हम डाळ्यौं  कू नाश,
हमारा बिगर मनखि तू,
विचार कर, ली सकल्यु सांस।

मै फर मनख्यौं जनु निछ गिच्चु,
नितर मैं भी बोल्दु मन की बात ...

कू छ यु मनखि जू काटणु मेरु गोळ,
मेरु बस चल्दु ता फोड़ी देन्दु तेरी लोळ।

मनखि जना कंदुड़  निछन,
पर क्या कन्न तौंकु...
जू डाळ्यौं की तड़फ नि सुणि सकदा।

  मै फर मनखि की तरौं आँखा निछन,
पर क्या कन्न तौं  आंख्यौं कू,
जू एक डाळी की पिड़ा नि देखि सकदा।

मनखि अजौं भि चेति जा,
अर बणु मा बणांग न लगौ।

लोभ का मयाजाळ सी तू  ऐजा  भैर,
हम डाळ्यौं कू तू निचंत न कर,

या हिछ "डाळ्यौं की अभिलाषा"..

प्रदीप लाल आर्य
ग्राम- पुजार गाँव (टिहरी गढ़वाल उत्तराखण्ड)
mob. 9756461704.
Email & fb:- parya0497@gmail.com
www.pradeeplalarya.blogspot. com

टिप्पणियाँ

लोकप्रिय पोस्ट